प्राक्कथन
किसी भी देश का विकास उसके नागरिकों की मान्यताएँ, नीतिगत निर्णय और पूँजी के न्यायिक वितरण और विनिमय से निर्धारित होता है। वर्तमान में विश्व में समाजवादी अर्थव्यवस्था और पूँजीवादी अर्थव्यवस्था प्रचलन में है। जहाँ समाजवादी अर्थव्यवस्था में प्रत्येक नागरिक के लिए सरकार नीतियाँ निर्धारित करती है वहीं पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में सरकार पूँजीवादियों के लिए नीतियाँ निर्धारित करती है और पूँजीवादी नागरिकों में पूँजी और साधन के वितरण सुनिश्चित करते हैं। सैद्धान्तिक रूप से दोनों ही अर्थव्यवस्था में कोई दोष नहीं है परन्तु व्यवहारिक स्तर पर अगर किसी देश के नागरिक या पूँजीवादी नैतिक स्तर पर उच्च नहीं हैं तो उस देश की अर्थव्यवस्था और विकास दोनों धराशायी हो जाते हैं। नैतिक स्तर की निम्नतम स्तर पर समाजवादी अर्थव्यवस्था पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के सापेक्ष अधिक प्रभावी साबित होती है।
जिस देश में पैसे की गति जितनी तेज होती है, उस देश में खुशहाली का स्तर उतना अधिक होता है। पैसा जितनी तेजी से एक हाथ से दूसरे हाथ में जाएगा, उतना ही लोग खुश रहेंगे। जिसके हाथ में पैसा जाता है, उस व्यक्ति को खुश कर देता है। दूसरे के हाथ में दूसरे को, तीसरे के हाथ में तीसरे को। यदि यह गति मन्द पड़ जाए तो खुश होने की आवृति घट जाती है। अतः पैसे का तीव्र गति से घूमना नागरिकों की खुशी निर्धारित करता है। समाजवादी अर्थव्यवस्था में यह गति चक्रीव अर्थात पैसा चक्रीय गति में लगातार घूमता रहता है। मजदूर से दुकानदार, दुकानदार से आढ़तिया, आढ़तिया से बड़ा आढ़तिया, बड़े आढ़तिया से मिल मालिक, मिल मालिक से फिर मजदूर। जबकि पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में यह गति उर्द्ध होती है। यह पूँजीवादी की जेब में तो पहुँच जाता है परन्तु निकलता देर से है जिससे इसकी गति मन्द हो जाती है। पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में पूँजी के स्थिर हो जाने की प्रवृत्ति भी ज्यादा होती है।
वर्तमान समय में हमारे देश में भी पूँजीवादी अर्थव्यवस्था प्रभावी है जो पूँजीपतियों के नैतिक स्तर की कमी के कारण लगातार नागरिकों में निराशा और हताशा का संचार कर रही है। आकड़े बयान कर रहे हैं कि इस समय देश की 80 प्रतिशत पूँजी मात्र 10 प्रतिशत लोगों के पास है। 50 प्रतिशत लोगों के पास तो मात्र 3 प्रतिशत पूँजी है जो इस देश में गरीबी-अमीरी की भयानक खाड़ी का कारण है। समाजवादी अर्थव्यवस्था में, जो इस देश के सन् 2000 के पहले तक लागू थी, इतनी अधिक चौड़ी खाई अमीरी-गरीबी में नहीं थी। खुशहाली का स्तर भी वर्तमान समय में काफी नीचे आ गया है और हर नागरिक के दिमाग में भविष्य को लेकर एक संशय की स्थिति वन गयी है जो आम नागरिकों की खुशी के स्तर को कम करती जा रही है।
अर्थव्यवस्था एवं विकास अपने आप में अत्यन्त जटिल विषय है। विषय-विशेषज्ञ भी इनकी समीक्षा में एकमत नहीं हो पाते। यहाँ तक कि अर्थ के नीतिगत फैसले के परिणामों पर हमेशा संशय बना रहता है। ऐसे में इस विषय पर किसी पुस्तक को आकार देना एक सामान्य व्यक्ति के लिए अत्यन्त मुश्किल कार्य हो जाता है, फिर भी शुभचिन्तकों एवं मित्रों की इच्छा का सम्मान करते हुए हमने इक छोटा सा प्रयास किया है। मेरा इस विषय पर कोई बृहद ज्ञान भण्डार नहीं है। अतः पाठकों से अनुरोध है कि इस पुस्तक को पढ़कर कोई मान्यता न बनाएँ वल्कि तर्क की कसौटी पर कसकर ही कोई अन्तिम निर्णय लें।
श्री राम बिहारी त्रिपाठी, मुहम्मद नसीम किदवई एवं श्री श्रीप्रकाश राय का मैं आभार व्यक्त करना वाहता हूँ जिनके सानिध्य में जीवन को समझने का सुअवसर प्राप्त हुआ और मेरे जीवन को वास्तविक दिशा में परिवर्तित करने का काम इन महानुभावों द्वारा किया गया। इसके अतिरिक्त श्री शब्बीर अहमद, श्री पी. सी. कटियार श्री एस. एम. आलेरज़ा, श्री ताड़क नाथ शुक्ल, श्री डी. पी. सिंह, श्री ओमवीर सिह, श्री राना अशोक कुमार सिंह का भी में विशेष शुक्रगुजार हूँ जिनसे जीवन में बहुत कुछ सीखने और समझने को मिला। अन्य सभी विभिन्न क्षेत्रों के मित्रों एवं शुभचिन्तकों श्री जी. एन. कटारिया श्री पी. एम. राजवीर, श्री टी. के. पित्रोदा, श्री वी. के. रफालिया, श्री एम. के. पटेल, डॉ. रश्मिन |
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